
आज बात करते हैं हिमाचल प्रदेश में पनप रही दमनकारी निति के बारे में | सबसे पहले आपको अबगत्त कराते हैं कि शिक्षा मंत्री ने प्रदेश में निजी स्कूलों की फीस बारे क्या निर्णय लिया है | सरकार ने निर्देश दिए हैं कि लॉक डाउन के दौरान सिर्फ ट्यूशन फीस ही ऐडा करनी होगी | अब भला इससे उन छात्रों को क्या फायदा होगा ,जो निजी स्कूलों में पढ़ते हैं ..? तो जाहिर सी बात है एक बड़ा सा ज़ीरो …
जी हाँ इससे निजी स्कूलों के छात्रों को कोई फायदा नहीं होने बाला | और यह एक सोची समझी रणनीति के तहत किया गया है | शिक्षा मंत्री का मन पहले भी निजी स्कूलों के प्रति ही स्नेहपूर्वक रहता है ,जो उनके पिछले निर्णयों से भी साबित होता है | तो क्या लाखों अभिभावक क्या हिमाचल के बाहर के हैं जो उनका दमन किया जाना चाहिए …?
वास्तव में होगा क्या …?
होगा यह कि निजी स्कूल ट्यूशन फीस को ही इतना बढ़ा देंगे ,कि सभी प्रकार के खर्च उसी में जुड़ जाएँ | इसके लिए सरकार के कोई निर्देश नहीं हैं कि ट्यूशन फीस कितनी हो सकती है या पिछली बार से कितना अधिक बढ़ा सकते हैं | ऐसे में जितनी फीस आप पहले देते थे आपको उतनी ही फीस देनी पड़ सकती है और महत्वपूर्ण बात यह है कि लोच डाउन के उन महीनों की भी देनी होगी जिन महीनों में आपके बच्चों ने स्कूल में पढ़ाई तक नहीं की होगी | यह पूरी तरह से जनता को भरमित भर करने का प्रयास है |
ऐसा नहीं है कि शिक्षा मंत्री का निजी स्कूलों के प्रति यह पहली बार स्नेह उम्दा है | साल भर पहले जब जनता ने मंत्री साहब के समक्ष , निजी स्कूलों द्वारा हर वर्ष दाखिला फीस लेने का मुद्दा उठाया था तब भी ठीक ऐसा ही निर्णय लिया गया था | निजी स्कूलों को हर वर्ष दाखिला फीस न लेने के निर्देश दिए गए थे , और निजी स्कूलों ने इस दाखिला फीस को हर महीने की फीस में मिलकर बसूल लिया था , वह भी ब्याज सहित |
ठीक अब भी यही होने बाला है …| हर प्रकार के शुल्क को इसी दाखिला फीस में मिलकर ले लिए जायेगा और जब तक विभाग और सरकार कोई दूसरा कदम उठाने की बात करेगी तब तक इस दमनकारी निति का दमन चक्र लाखों छात्रों पर चल चुका होगा |
पिछली बार भी जब यह मुद्दा शिक्षा मंत्री के समक्ष उठाया गया कि स्कूलों ने दाखिला फीस तो नहीं ली मगर फीस ही बहुत अधिक बढ़ा दी | तब उन्होंने कहा था कि इस बारे निति बनाई जाएगी , जिससे निजी स्कूल अपनी मर्जी से फीस नहीं बढ़ा सकें | मगर एक साल गुजर गया , और यह निति नहीं बनी , क्यूंकि शायद ऐसी निति से सरकार को कोई फायदा नहीं है |
शिक्षा मंत्री ने पिछले हफ्ते ही अपना निजी स्कूलों के प्रति खास स्नेह जाहिर कर दिया था , जिसमें उन्होंने कहा था कि फीस तो देनी ही होगी , वर्ना निजी स्कूल अपने अध्यापकों को सैलरी कहाँ से देंगे | लेकिन मंत्री साहब ने यह नहीं बताया कि जिन लाखों लोगों को लॉक डाउन ने बिरोजगार किया है , वह लोग इतनी अधिक फीस कहाँ से देंगे |
होना तो यह चाहिए था कि एक बीच का रास्ता निकालकर जो फीस पिछली बार दी गई गई , उसके 40% या 50% तक लॉक डाउन के दौरान के महीनों के चुकाने के निर्देश होते , जिससे कुछ बोझ छात्रों पर पड़ता और कुछ स्कूलों पर , कुछ अध्यापकों पर | मगर नहीं यहाँ तो एक दमनकारी चक्र चलाने की कोशिश की जा रही है |
एक तरफ लॉकडाउन के चलते लाखों लोग, बेरोजगारी से जूझ रहे हैं, तो दूसरी तरफ सरकार, नए नए करों का बोझ उनके कंधों पर डालने के रास्ते तलास कर रही है।
एक पुरानी कहाबत याद जरूर आय रही है कि “भेड़ पर ऊन कोई नहीं छोड़ता ” तो यकीन मानिये ये ऊन ,इस दमनकारी चक्र में कोई छोड़ेगा भी नहीं …
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