
धर्मगुरु दलाईलामा ने कहा कि मैं 88 साल की उम्र में भी बॉक्सिंग कर सकता हूं। समय-समय पर मैं अपनी डॉक्टरी जांच के साथ आयुर्वेदिक सलाह लेता हूं, जिससे पूरी तरह स्वस्थ हूं। वीरवार को अपने कार्यालय में 27वें वार्षिक गुरुकुल विद्वानों से बातचीत में उन्होंने कहा कि तिब्बती परंपरा से संबंध रखने वाले लोग हमेशा नए अध्ययन के साथ तथ्यों की खोज करते रहते हैं।
तिब्बती परंपरा के लोगों का रोजाना विभिन्न परंपराओं के लोगों से मिलना होता है। ऐसे में तिब्बती लोग सभी परंपराओं का आदर-सम्मान करते हैं। तिब्बती लोगों में बचपन से ही ज्ञान की खोज करने की मानसिकता बनी होती है। मैं स्वयं बचपन से तर्कों पर आधारित दृष्टिकोण रखता आया हूं। तर्क आधारित अध्ययन के बाद ही हम एक अच्छे निष्कर्ष पर पहुंच पाते हैं।
वैज्ञानिक अध्ययन के तौर पर भी तर्कों पर आधारित दृष्टिकोण बहुत महत्वपूर्ण होता है। वहीं नालंदा परंपरा पर पूछे गए सवाल पर धर्मगुरु ने कहा कि नालंदा परंपरा को पिछली कुछ पीढ़ियों ने आगे बढ़ाने के प्रयास किया है। इस पर उन्हें गर्व है। धर्मगुरु ने बताया नालंदा परंपरा से ही तिब्बती समुदाय और भारत के बीच एक घनिष्ठ संबंध बना हुआ है।
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