
ताजा अध्ययन में खुलासा हुआ है कि भारत में पुरुषों की तुलना में महिलाएं डिप्रेशन और चिंता की ज्यादा शिकार होती हैं। ‘द लांसेट साइकेट्री’ में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, डिप्रेशन की शिकार महिलाएं आत्महत्या जैसे कदम ज्यादा उठाती हैं। यह भारत में इस तरह की मानसिक बीमारियों का पहला सबसे बड़ा अध्ययन है, जिसमें पाया गया है कि साल 1990-2017 के बीच देश में मेंटल हेल्थ संबधी बीमारियां दोगुना हो गई हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 2017 में हर सात में से एक भारतीय में किसी न किसी रूप में यह दिमागी बीमारी पाई गई है। इसके कई रूप हैं जिन्हें अवसाद, चिंता, सिज़ोफ्रेनिया और बायपोलर डिसऑर्ड के नाम से जाना जाता है। देश में 3.9 फीसदी महिलाएं एंग्जाइटी का शिकार हैं, वहीं पुरुषों में इसका स्तर 2.7 फीसदी है।
https://www.myupchar.com से जुड़े ऐम्स के डॉ. ओमर अफरोज के अनुसार, दुःख, बुरा महसूस करना, दैनिक गतिविधियों में रुचि या खुशी ना रखना हम इन सभी बातों से परिचित हैं। लेकिन जब यही सारे लक्षण हमारे जीवन में अधिक समय तक रहते हैं और हमें बहुत अधिक प्रभावित करते हैं, तो इसे अवसाद यानि डिप्रेशन कहते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार दुनिया भर में अवसाद सबसे सामान्य बीमारी है। और दुनिया भर में लगभग 350 मिलियन लोग अवसाद से प्रभावित होते हैं।
महिलाओं पर डिप्रेशन के प्रमुख कारण
भारत में महिलाओं की जीवनशैली ऐसी है कि उन पर डिप्रेशन का खतरा मंडराता रहता है। हालांकि वक्त से साथ हालात सुधरे हैं, महिलाएं अपने पैरों पर खड़ी हुई हैं, उनमें आत्मविश्वास बढ़ा है, फिर भी डिप्रेशन का खतरा उनमें अधिक है।
मासिक धर्म से जुड़ी बीमारियां: मासिक धर्म को लेकर आज भी समाज के एक बड़े हिस्से में खुलकर बात नहीं होती है। नतीजा, इससे जुड़ी सभी परेशानियां लड़की या महिला को खुद ही झेलना पड़ती है। यही कारण है कि वह चिंता और डिप्रेशन से घिर जाती हैं। यह स्थिति उन्हें शारीरिक के साथ ही भावनात्मक रूप से भी कमजोर कर देती है। उनमें चिड़चिड़ापन और थकान महसूस होती है।
शादीशुदा जिंदगी: शादी को लेकर लड़कियों में कई चिंताएं होती हैं। वे यह सोचकर डिप्रेशन में आ जाती हैं कि शादी के बाद उनकी जिंदगी कैसी रहेगी। आमतौर पर ससुराल पक्ष के बुरे बर्ताव की खबरें उनके मन को आशंकित कर देती हैं। वहीं कुछ लड़कियां अपने पति और नए परिवार से कई उम्मीदें लगा बैठती हैं, जो पूरी नहीं होती हैं तो डिप्रेशन हावी हो जाता है।
गर्भावस्था और डिलीवरी के दौरान: गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के मन में तरह-तरह के विचार आते हैं और वे डिप्रेशन में चली जाती हैं। इसी कारण कई बार महिला प्रेगनेंसी के दौरान बेहोश हो जाती है। यही स्थिति डिलीवरी के दौरान भी बनती है। जिन महिलाओं को मोटापा और अन्य बीमारियां होती हैं, उनमें इसका खतरा अधिक होता है। मां बनने के बाद शुरुआती हफ्तों में महिलाएं भावनाओं के रोलर कोस्टर से गुजरती हैं। इसे बेबी ब्लूज कहते हैं।
डायस्टियमिया: यह डिप्रेशन का वह रूप है जो लंबे समय तक रहता है। यह कामकाजी महिलाओं में कम और गृहिणियों में ज्यादा पाया जाता है। महिलाएं उदास रहती हैं। उनकी नींद कम हो जाती है, हमेशा थकान रहती है और आत्मविश्वास डगमगाया हुआ रहता है। ऐसी महिलाएं ही आत्महत्या अधिक करती हैं।
डिप्रेशन के लक्षण नजर आए तो करें यह काम
www.myupchar.com के अनुसार, डिप्रेशन का सबसे बड़ा लक्षण स्वभाव में नजर आता है। यदि ऐसा कोई संकेत मिलता है तो खुद पर नजर रखें। योग और प्राणायाम शुरू करे दें। इससे दिमागी मजबूती मिलेगी। अपने आहार पर ध्यान दें। पौष्टिक आहार जरूरी है। अपने दिमाग में उठ रहे विचारों या जीवन में आ रही समस्याओं के बारे दोस्त या परिवार के किसी सदस्य से खुलकर बात करें। हो सकता है आसानी से समाधान निकल जाएं और आप चिंतामुक्त हो जाएं। यदि लक्षण लंबे समय तक बने रहते हैं तो डॉक्टर को दिखाएं। दवाएं से भी डिप्रेशन का इलाज संभव है।
कृपया अपनी खबरें, सूचनाएं या फिर शिकायतें सीधे news4himachal@gmail.com पर भेजें। इस वेबसाइट पर प्रकाशित लेख लेखकों, ब्लॉगरों और संवाद सूत्रों के निजी विचार हैं। मीडिया के हर पहलू को जनता के दरबार में ला खड़ा करने के लिए यह एक सार्वजनिक मंच है।