
रोज़ सवेरे अखबार में हम औरतों के खिलाफ हो रहे अत्याचारों की ख़बरें बड़े – बड़े काले अक्षरों में पढ़ते हैं। कभी कन्या भ्रूण हत्या तो कभी गेंग रेप, कभी कचरा पात्र में मिली नवजात तो कभी अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच झूझ रही एक पीडिता। ऐसे ही न जाने कितने अनगिनत वारदातें हैं जिन्हें हम रोज़ाना पढ़कर उन अपराधियों को थोड़ा कोसते हैं और उन पीडित महिलाओं की ओर अपनी सहानूभूति जताते हैं । लेकिन आगे क्या? सहानूभूति नहीं साथ और समर्थन चाहिए।
इस संसार की उस सोच से लड़ने की हिम्मत चाहिये जिसने हमें अपनी जंजीरों में जकड़ा हुआ है । हमें ज़्यादा कुछ नहीँ, केवल अपना सम्मान और आत्मविश्वास चाहिये, जो इस पुरुषवादी संसार की ओछी सोच और संकीर्ण विचारों से होने वाले दुष्कर्मों के तले दब गया है । आशा है इस कविता के ज़रिये कुछ लोगों की सोच में बदलाव आये । जिस औरत को ये संसार मंदिरों में मूर्ति बनाकर पूजता है और बाहर उसी का तिरस्कार कर पैरों की धूल समझता है, जिसके न होने से इस संसार की प्रगति पर भी विराम लग सकता है, फ़िर भी उससे उसके जन्म लेने का अधिकार भी छीन लिया जाता है, आशा है उसे वो सारे हक मिले जिसके साथ भगवान ने उसे बनाकर इस धरती पर भेजा है।
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