
भारतीय मसालों में हींग का अहम स्थान है और इसका स्वाद हर व्यंजन में मिलता है। अब भारत हींग की खुशबू से महकेगा। यह संभव होगा हिमालय जैव संपदा प्रौद्योगिकी संस्थान (आइएचबीटी) पालमपुर की बदौलत। संस्थान ने ईरान से हींग का बीज मंगवाने के बाद इसके पौधे तैयार किए हैं और इन्हें किसानों को मुहैया करवाया जाएगा।
हिमाचल और देश के पहाड़ी राज्यों में हींग की खेती की अपार संभावनाएं हैं। संस्थान नर्सरी में तैयार पौधों को जल्द किसानों को उपलब्ध करवाएगा। हींग का प्रयोग प्रमुख तौर पर दवा और मसाले के रूप में किया जाता है। पाचन तंत्र, सर्दी-जुकाम से निपटने के लिए भी हींग रामबाण है। इसके अलावा आयुर्वेदिक दवाओं में भी इसका प्रयोग किया जाता है।
एनबीपीजीआर से ली है अनुमति
नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक्स रिसोर्स (एनबीपीजीआर) से किसी भी विदेशी फसल को देश में लाने के लिए अनुमति की आवश्यकता होती है। यह संस्थान देखता है कि जिस फसल के बीज को लाया जा रहा है वह यहां की आबोहवा सहन कर सकता है या नहीं। साथ ही यह भी देखा जाता है कि इससे कोई बीमारी तो संबंधित क्षेत्र में नहीं होगी। आइएचबीटी पालमपुर एनबीपीजीआर की देखरेख में चयनित किसानों से ही हींग के पौधे लगवाएगा। संस्थान ने इस बाबत अनुमति भी ले ली है।
भारत में 1145 टन हींग का किया जाता है आयात
भारत में हींग का विदेशों से आयात किया जाता है। अकेले अफगानिस्तान से ही 77 मिलियन यूएसडी हींग आयात किया जाता है। इसके अलावा ईरान और उज्बेकिस्तान से भी इसे मंगवाया जाता है। इसका उत्पादन ठंडे क्षेत्रों में होता है। बाजार में हींग 35 से 40 हजार रुपये प्रति किलो बिकता है।
भारत सरकार के सहयोग से आधिकारिक तौर पर सभी औपचारिकताओं को पूरा कर हींग के बीज ईरान से मंगवाए हैं। वर्ष 2015 से इसके लिए प्रयास आरंभ किए थे। अब संस्थान ने नर्सरी में पौधों को तैयार किया है। पौधे की ऊंचाई एक से डेढ़ मीटर होती है। संस्थान लाहुल स्पीति में पौधों को विशेष तौर पर तैयार कर रहा है। हिमाचल के लाहुल-स्पीति व भरमौर, लेह-लद्दाख और उत्तराखंड में किसानों को खेती करने के लिए
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