
श्राद्ध पक्ष में पितरों के निमित्त पिंडदान किया जाता है। इसे आसान शब्दों में श्राद्ध भी कहते हैं। आमतौर पर लोग एक दो तरह के श्राद्ध के बारे में जानते हैं। पितृ पक्ष में किया जाने वाला श्राद्ध, किसी भी मांगलिक कार्य के पहले किया जाने वाला श्राद्ध और अगर कुंडली में पितृदोष हो तो उसे दूर करने के लिए किया जाने वाला श्राद्ध। लेकिन, हमारे धर्मग्रंथ बताते हैं कि श्राद्ध दो या तीन नहीं, बल्कि पूरे 12 तरह के होते हैं। धर्मग्रंथों में इन श्राद्धों के बारे में बताया गया है। निर्णय सिन्धु में 12 प्रकार के श्राद्धों का उल्लेख मिलता है।
- नित्य श्राद्धः कोई भी व्यक्ति अन्न, जल, दूध, कुशा, पुष्प व फल से प्रतिदिन श्राद्धकरके अपने पितरों को प्रसन्न कर सकता है।
- नैमित्तक श्राद्ध- यह श्राद्ध विशेष अवसर पर किया जाता है। जैसे- पिता आदि की मृत्यु तिथि के दिन इसे एकोदिष्ट कहा जाता है। इसमें विश्वदेवा की पूजा नहीं की जाती है, केवल मात्र एक पिण्डदान दिया जाता है।
- काम्य श्राद्धः किसी कामना विशेष के लिए यह श्राद्ध किया जाता है। जैसे- पुत्र, धनादि की प्राप्ति आदि।
- वृद्धि श्राद्धः यह श्राद्ध सौभाग्य वृद्धि के लिए किया जाता है।
- सपिंडन श्राद्ध- मृत व्यक्ति के 12वें दिन पितरों से मिलने के लिए किया जाता है। इसे स्त्रियां भी कर सकती है।
- पार्वण श्राद्धः पिता, दादा, परदादा, सपत्नीक और दादी, परदादी, व सपत्नीक के निमित्त किया जाता है। इसमें दो विश्वदेवा की पूजा होती है।
- गोष्ठी श्राद्धः यह परिवार के सभी लोगों के एकत्र होने के समय किया जाता है।
- कर्मांग श्राद्धः यह श्राद्ध किसी संस्कार के अवसर पर किया जाता है।
- शुद्धयर्थ श्राद्धः यह श्राद्ध परिवार की शुद्धता के लिए किया जाता है।
- तीर्थ श्राद्धः यह श्राद्ध तीर्थ में जाने पर किया जाता है।
- यात्रार्थ श्राद्धः यह श्राद्ध यात्रा की सफलता के लिए किया जाता है।
- पुष्टयर्थ श्राद्धः शरीर के स्वास्थ्य व सुख समृद्धि के लिए त्रयोदशी तिथि, मघा नक्षत्र, वर्षा ऋतु व आश्विन मास का कृष्ण पक्ष इस श्राद्ध के लिए उत्तम माना जाता है।
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