
आजकल की जीवनशैली और प्रदूषण के कारण त्वचा संबंधी रोग बढ़ते जा रहे हैं। इन रोगों में सबसे आम है त्वचा संबंधी रोग ‘सरायसिस’। इसके लक्षण हैं – शरीर पर लाल चकत्ते और उन पर सफेद रंग की ऊपरी त्वचा, त्वचा में दरारें पड़ना, पानी जैसा पतला द्रव बहना, खुजली और जलन। द जर्नल ऑफ आयुर्वेदा एंड इंटीग्रेटिव मेडिसिन के मुताबिक, सरायसिस की समस्या वात-पित्त के असंतुलन से होती है। इस रोग के कारण शरीर में विषैले तत्व इकट्ठे हो जाते हैं जो रक्त और मांसपेशियों के अलावा इनके अंदर के ऊत्तकों को संक्रमित करने लगते हैं। सरायसिस मुख्यत: कुहनी, घुटने और सिर की त्वचा को प्रभावित करती है।
myupchar.com से जुड़े एम्स के डॉ. उमर अफरोज के मुताबिक, आम इंसानों में त्वचा पुरानी कोशिकाओं को बदलने और नई कोशिकाओं का निर्माण करने में 28 दिन का समय लेती है, लेकिन सरायसिस में त्वचा सिर्फ 4-5 दिन में नए कोशिकाओं का उत्पादन करती हैं। इससे अतिरिक्त कोशिकाओं का जमना शुरू हो जाता है और ये अतिरिक्त कोशिकाएं लाल, शुष्क और खुजली वाले पैच का कारण बनती है। आयुर्वेद एक्सपर्ट डॉ.लक्ष्मीदत्त शुक्ला बताते हैं, ‘त्रिदोष या धातु के खराब होने, अनुचित खाद्य या पेय पदार्थों के सेवन या किसी त्वचा रोगग्रस्त मरीज के संपर्क में आने से सरायसिस जैसा त्वचा रोग हो सकता है। आयुर्वेद में इसका प्रभावी इलाज है।’ आयुर्वेदिक उपचार का प्राथमिक उद्देश्य रक्त और ऊतकों का शुद्धिकरण होता है। शरीर से विषाक्त पदार्थों को साफ किया जाता है और इसके संचय को रोकने के लिए पाचन में सुधार किया जाता है।
ये है सरायसिस का आयुर्वेदिक उपचार
(अनुभवी आयुर्वेदिक विशेषज्ञों की निगरानी में ही यह इलाज किया जाना चाहिए।)
आहार परिवर्तन : डॉ. लक्ष्मीदत्त शुक्ला के अनुसार, आयुर्वेद स्वास्थ्य विज्ञान में सरायसिस की चिकित्सा के लिए अनेक औषधियों के विकल्प के साथ-साथ आहार-विहार, परहेज का विशेष ध्यान रखा जाता है। आयुर्वेद एक शाकाहारी भोजन खाने पर जोर देता है। कार्बोहाइड्रेट और वसा (फैट) वाले खाद्य पदार्थों से बचना चाहिए। मरीज को नमकीन, बहुत खट्टा, या बहुत अम्लीय खाद्य पदार्थों से बचना चाहिए। ऐसा करके आप अपने शरीर को विषाक्त पदार्थों को साफ करने में मदद करते है। इस के दौरान मरीज को अचार, बैंगन, आलू और बादी करने वाली चीजों से परहेज करना होता है।
फलाहार: आयुर्वेद कहता है कि सरायसिस के रोगियों को बीमारी के पहले 15 दिनों में सिर्फ फलाहार ग्रहण करना चाहिए। उसके बाद अधिक से अधिक दूध और फलों का रस पीना चाहिए। इससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
बादाम : रात को सोने से कुछ देर पहले 10 बादाम लें और उन्हें अच्छी तरह पीसकर पाउडर बनाएं। इन्हें एक गिलास पानी में कुछ देर उबलने के लिए छोड़ दें और ठंडा हो जाने पर रोगी के घावों पर लगाएं। आप इसे रात भर रोगी के शरीर पर ही लगा रहने दें और सुबह उठकर शरीर को साफ करें। इस उपचार से सरायसिस के इलाज के लिए अच्छे परिणाम मिले है। चंदन पावडर का भी इसी तरह इस्तेमाल किया जाता है।
नींबू : एक कटोरी में नींबू का रस निकाल लें और रस की आधी मात्रा में पानी मिलाएं। इस मिश्रण को अच्छी तरह मिलाने के बाद उस जगह लगाएं जहां सरायसिस हुआ है। इस रस को हर चार घंटे के बाद प्रयोग में लाना है। अगर नींबू रस पीते भी है तो भी इससे आपकी त्वचा का रोग धीरे-धीरे कम होने लगता है।
पानी : अगर सर्दियों के मौसम में सरायसिस हुआ है तो दिन में करीब तीन लीटर पानी अवश्य पियें । अगर गर्मियों में यह बीमारी हुई है तो छह लीटर पानी पियें। इस तरह जहरीले तत्व बाहर हो जाएंगे।
केले के पत्ते : पत्ता गोभी और केले के पत्तों का इस्तेमाल सरायसिस के उपचार के लिए किया जाता है। रोगी अपने शरीर के उस स्थान पर पत्तों को बांधें जहां सरायसिस हुआ है।
नमक: सरायसिस के रोगियों को अपने खाने में नमक के सेवन को बिल्कुल बंद कर देना चाहिए, जबकि संक्रमित भाग को रोजाना नमक मिश्रित पानी से साफ करने से रोगी को आराम मिलता है।
ये क्रियाएं भी काम की
योग : नियमित रूप से योग करने से शरीर के सभी दूषित पदार्थ बाहर निकल जाते है और मन को तनाव से दूर मुक्ति मिलती है।
प्रकाश चिकित्सा : सरायसिस में त्वचा में शुष्कता बन जाती है इसीलिए विटामिन डी की भी कमी हो जाती है। इसके उपचार के लिए प्रकाश चिकित्सा का सहारा लिया जाता है। प्रकाश चिकित्सा में मुख्य रूप से सूरज की किरणों का इस्तेमाल किया जाता है किन्तु याद रहे कि अधिक धूप सेंकने से विपरीत प्रभाव पड़ने की आशंका बनी रहती है।
पंचकर्म पद्धति : डॉ. लक्ष्मीदत्त शुक्ला के अनुसार, पंचकर्म थेरेपी के वमन और विरेचन कर्म, दोनों सरायसिस में फायदेमंद हैं। सबसे पहले रोगी की आवश्यकता के अनुसार औषधीय घृत तैयार किया जाता है। इसका सेवन सात दिन तक करना होता है। इसके पश्चात वमन एवं विरेचन द्वारा आंतों को साफ किया जाता है।
कृपया अपनी खबरें, सूचनाएं या फिर शिकायतें सीधे news4himachal@gmail.com पर भेजें। इस वेबसाइट पर प्रकाशित लेख लेखकों, ब्लॉगरों और संवाद सूत्रों के निजी विचार हैं। मीडिया के हर पहलू को जनता के दरबार में ला खड़ा करने के लिए यह एक सार्वजनिक मंच है।