
परागपुर।आज की शिक्षा व्यवस्था बहुत सुवयवस्थित हो गयी है, किताबें, गणवेश, भोजन, बैग, सहित और भी सुविधाएं बच्चों को आज मिल रही हैं।धड़ाधड़ डिग्रियां बच्चे ले रहे हैं।लेकिन शिक्षा के प्रचार-प्रसार के साथ साथ देश समाज मे अराजकता, अभिमान, दुराचार, रिश्वत व नैतिक पतन बढ़ता जा रहा है। इसका मूल कारण है, मूल्य आधारित व संस्कार युक्त शिक्षा का न दिया जाना। यह बात ऋषिकेश से आये प्रख्यात संत स्वामी नित्यानन्द जी महाराज ने कही। परागपुर बल्ला में भागवत प्रवचन के अंतर्गत किये अपने वयाख्यान में उन्होंने कहा कि संस्कार देने का सर्वप्रथम कर्तव्य मां का होता है। प्रह्लाद को शिक्षा मां कमाधु से ही मिली थी गुरु या पिता से नही। मां ही संसार मे सर्वश्रेष्ठ गुरु मानी गई है। उन्होंने उपस्थित माताओं से आह्वान किया कि बच्चों को संस्कारी बनाएं उन्हें प्रह्लाद व ध्रुव चरित्र सुनाएं।
उन्होंने कहा कि टूटे कपड़े पहनने, घर में कुत्ता मुर्गा पालने टूटे बर्तन रखने, मांसाहार करने से लक्ष्मी नाराज होती है। घर मे दरिद्रता फैलती है सम्पन्नता दूर चली जाती है। उन्होंने शास्त्रसम्मत अध्यात्म के प्रचार के प्रतिकूल कार्य करने पर असंतोष व्यक्त किया व कहा कि अपने आप को भगवान बताने वाले कुछ तथाकथित सन्त जेल में है, तो कुछ जेल जाने की तैयारी में हैं। उन्होंने लोंगो से धार्मिक साहित्य विशेषकर गीत प्रेस के साहित्य का पठन पाठन करने का आग्रह किया। उन्होंने सभी से आग्रह किया कि अपने बच्चों के नाम भगवान व देवियों के नाम पर रखने का आग्रह किया।
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