वैज्ञानिकों का मानना है कि अटल टनल से होकर सर्दियों के मौसम में भी वाहनों की आवाजाही में ऐसा इजाफा होता रहा तो घाटी के पर्यावरण में भविष्य में उम्मीद से अधिक बदलाव देखने को मिलेगा। घाटी के कई इलाकों में दिसंबर में पाउडर बर्फ गिरती थी, लेकिन इस बार बारिश हो रही है। पर्यावरण वैज्ञानिकों के अनुसार नवंबर महीने के बाद जिस इलाके में वाहनों की आवाजाही शून्य हो जाती थी, लेकिन आज अटल टनल बनने के बाद रोजाना हजारों की संख्या में वाहन घाटी में प्रवेश कर रहे हैं। टूरिज्म के लिहाज से यह जरूर फायदेमंद हो सकता है, लेकिन घाटी के संवेदनशील पारिस्थितिक संतुलन के लिए ठीक नहीं है।
वायु प्रदूषण से पर्यावरण में बढ़ रही एलोसॉल की मात्रा
सेंटर फॉर पर्यावरण आकलन एवं जलवायु परिवर्तन के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. जगदीश चंद कुनियाल का कहना है कि सीमा से अधिक वाहनों की आवाजाही के कारण भारी मात्रा में वायु प्रदूषण की वजह से पर्यावरण में एरोसॉल की मात्रा बढ़ने लगी है। इससे पर्यावरण में ब्लैक कार्बन भी बढ़ रहा है। घाटी में वेजिटेशन की कमी से तापमान में नियंत्रण संभव नहीं है। आने वाले समय के लिए यह पूरे इलाके के लिए घातक सिद्ध हो सकता है। ऐसे इलाके में कार्बन की मात्रा बढ़ जाने से हीट ऑब्जर्विंग पावर बढ़ जाती है। इससे निश्चित तौर पर सैकड़ों साल पुराने ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार भी बढ़ जाएगी।
रोजाना 4 से 5 हजार वाहन घाटी में कर रहे प्रवेश
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