काम की बात : जानिए क्या है उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में #news4
March 14th, 2022
|
Post by :- Ajay Saki
|
436 Views
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम – 2019
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में केन्द्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) की स्थापना और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स के अनुचित व्यापार चलन को रोकने के लिए नियम भी शामिल हैं। यह उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा करता है, विवाद प्रक्रिया को सरल बनता है, उत्पाद दायित्व की अवधारणा की शुरुआत करता है। सीसीपीए को उपभोक्ता अधिकारों और संस्थानों की शिकायतों/अभियोजन के उल्लंघन की जांच करने, असुरक्षित वस्तुओं और सेवाओं को वापस लेने का आदेश देने, अनुचित व्यापार चलनों और भ्रामक विज्ञापनों को रोकने का आदेश देने, निर्माताओं / समर्थनकर्ताओं / भ्रामक विज्ञापनों के प्रकाशकों पर जुर्माना लगाने का अधिकार होगा।
इस अधिनियम के तहत प्रत्येक ई-कॉमर्स इकाई को अपने मूल देश समेत रिटर्न, रिफंड, एक्सचेंज, वारंटी और गांरटी, डिलीवरी एवं शिपमेंट, भुगतान के तरीके, शिकायत निवारण तंत्र, भुगतान के तरीके, भुगतान के तरीकों की सुरक्षा, शुल्क वापसी संबंधित विकल्प आदि के बारे में सूचना देना अनिवार्य है जोकि उपभोक्ता को अपने प्लेटफॉर्म पर खरीददारी करने से पहले उपयुक्त निर्णय लेने में सक्षम बनाने के लिए जरूरी है।
इस अधिनियम के तहत ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स को 48 घंटों के भीतर उपभोक्ता को शिकायत प्राप्ति की सूचना देनी होगी और शिकायत प्राप्ति की तारीख से एक महीने के भीतर उसका निपटारा करना होगा। इसके अलावा,
नया अधिनियम उत्पाद दायित्व की अवधारणा को प्रस्तुत करता है और मुआवजे के किसी भी दावे के लिए उत्पाद निर्माता, उत्पाद सेवा प्रदाता और उत्पाद विक्रेता को इसके दायरे में लाता है। अधिनियम में कई बातें शामिल हैं जैसे कि – राज्य और जिला आयोगों का सशक्तिकरण ताकि वे अपने स्वयं के आदेशों की समीक्षा कर सकें, उपभोक्ता को इलेक्ट्रॉनिक रूप से शिकायत दर्ज करने और उन उपभोक्ता आयोगों में शिकायत दर्ज करने में सक्षम करना जिनके अधिकार क्षेत्र में व्यक्ति के आवास का स्थान आता है, सुनवाई के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और अगर 21 दिनों की निर्दिष्ट अवधि के भीतर स्वीकार्यता का सवाल तय नहीं हो पाए तो शिकायतों की स्वीकार्यता को मान लिया जायेगा। उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के नियमों के अनुसार 5 लाख रुपये तक का मामला दर्ज करने के लिए कोई शुल्क नहीं लगेगा।
इलेक्ट्रॉनिक रूप से शिकायतें दर्ज करने के लिए भी इसमें प्रावधान है, न पहचाने जाने वाले उपभोक्ताओं की देय राशि को उपभोक्ता कल्याण कोष (सीडब्ल्यूएफ) में जमा किया जाएगा। नौकरियों, निपटान, लंबित मामलों और अन्य मसलों पर राज्य आयोग हर तिमाही केंद्र सरकार को जानकारी देंगे। ये नया अधिनियम उत्पाद दायित्व की अवधारणा को भी लाया है, और मुआवजे के लिए किसी भी दावे के लिए उत्पाद निर्माता, उत्पाद सेवा प्रदाता और उत्पाद विक्रेता को अपने दायरे में लाता है। इस अधिनियम में एक सक्षम न्यायालय द्वारा मिलावटी / नकली सामानों के निर्माण या बिक्री के लिए सजा का प्रावधान है। पहली बार दोषी पाए जाने की स्थिति में संबंधित अदालत दो साल तक की अवधि के लिए व्यक्ति को जारी किए गए किसी भी लाइसेंस को निलंबित कर सकती है, और दूसरी बार या उसके बाद दोषी पाए जाने पर उस लाइसेंस को रद्द कर सकती है। सामान्य नियमों के अलावा केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण परिषद नियम, उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग नियम, राज्य / जिला आयोग में अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति के नियम, मध्यस्थता नियम, मॉडल नियम, ई-कॉमर्स नियम और उपभोक्ता आयोग प्रक्रिया विनियम, मध्यस्थता विनियम और राज्य आयोग एवं जिला आयोग पर प्रशासनिक नियंत्रण संबंधी विनियम भी हैं।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 में न्याय के लिए एकल बिंदु पहुंच दी गई थी जो कि काफी समय खपाने वाला होता है। कई संशोधनों के बाद ये नया अधिनियम लाया गया है ताकि खरीदारों को न केवल पारंपरिक विक्रेताओं से बल्कि नए ई-कॉमर्स खुदरा विक्रेताओं / मंचों से भी सुरक्षा प्रदान की जा सके। उम्मीद है कि ये अधिनियम देश में उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण साबित होगा।
यह एक संक्षिप्त विवरण जानकारी के साथ है। अगली कड़ी में में इससे संबंधित अन्य महत्वपूर्ण बिन्दुओं के साथ मिलेंगे क्योंकि हर बात जानना भी हम सभी का अधिकार जो है।
कृपया अपनी खबरें, सूचनाएं या फिर शिकायतें सीधे [email protected] पर भेजें। इस वेबसाइट पर प्रकाशित लेख लेखकों, ब्लॉगरों और संवाद सूत्रों के निजी विचार हैं। मीडिया के हर पहलू को जनता के दरबार में ला खड़ा करने के लिए यह एक सार्वजनिक मंच है।