G20 Summit : चीन-पाकिस्तान को PM मोदी की दो टूक, जी-20 समिट से पहले प्रधानमंत्री का इंटरव्यू
September 3rd, 2023
| Post by :- Ajay Saki
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PM Modi PTI Interview : जी-20 समिट से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पीटीआई को स्पेशल इंटरव्यू दिया। इंटरव्यू में उन्होंने जी- 20, आतंकवाद, रूस यूक्रेन युद्ध समेत कई मुद्दों पर बात की। पेश हैं सवाल और उनके जवाब-
प्रश्न: हमारे कुछ पड़ोसियों ने कुछ बैठकों के आयोजन स्थलों पर आपत्ति जताई। पाकिस्तान और चीन की आपत्ति के बावजूद हमने कश्मीर और अरुणाचल प्रदेश में जी-20 में विदेशी नेताओं की मेजबानी करके क्या संदेश दिया?
उत्तर : मैं हैरान हूं कि पीटीआई-भाषा इस तरह का सवाल पूछ रही है। यदि हमने उन स्थानों पर बैठकें आयोजित करने से परहेज किया होता, तब इस तरह का सवाल वैध होता।
हमारा देश इतना विशाल, सुंदर और विविधतापूर्ण है। जब जी-20 की बैठकें हो रही हैं, तो क्या यह स्वाभाविक नहीं है कि हमारे देश के हर हिस्से में बैठकें हों?
प्रश्न: भारत ने जी-20 की अध्यक्षता तब संभाली जब अधिकांश सदस्य राष्ट्र मंदी के खतरे का सामना कर रहे थे, जबकि भारत एकमात्र उभरता हुआ देश था। भारत ने ऋण प्रवाह, मुद्रास्फीति नियंत्रण और वैश्विक कर सौदों पर आम सहमति बनाने के लिए सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में अपनी स्थिति का लाभ कैसे उठाया है?
उत्तर : 2014 से पहले के तीन दशकों में, हमारे देश ने कई सरकारें देखीं जो अस्थिर थीं और इसलिए बहुत कुछ करने में असमर्थ थीं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में लोगों ने एक निर्णायक जनादेश दिया है जिसकी वजह से एक स्थिर सरकार, अनुमानित नीतियां और समग्र दिशा में स्पष्टता आई है।
यही कारण है कि पिछले नौ वर्षों में कई सुधार किए गए। अर्थव्यवस्था, शिक्षा, वित्तीय क्षेत्र, बैंक, डिजिटलीकरण, कल्याण, समावेशन और सामाजिक क्षेत्र से संबंधित इन सुधारों ने एक मजबूत नींव रखी है और विकास इसका स्वभाविक प्रतिफल है।
भारत द्वारा की गई तीव्र और निरंतर प्रगति ने स्वाभाविक रूप से दुनिया भर में रुचि पैदा की और कई देश हमारी विकास कहानी को बहुत करीब से देख रहे हैं। वे आश्वस्त हैं कि यह प्रगति आकस्मिक नहीं है, बल्कि ‘सुधार, प्रदर्शन, परिवर्तन’ के स्पष्ट, कार्य-उन्मुख रोडमैप के परिणामस्वरूप हो रही है।
लंबे समय तक, भारत को एक अरब से अधिक भूखे पेट वाले लोगों के राष्ट्र के रूप में जाना जाता था। लेकिन अब, भारत को एक अरब से अधिक आकांक्षी प्रतिभाओं, दो अरब से अधिक कुशल हाथों और लाखों युवाओं के राष्ट्र के रूप में देखा जा रहा है। हम न केवल दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाले देश हैं, बल्कि सबसे बड़ी युवा आबादी वाला देश भी हैं। इसलिए, भारत के बारे में दृष्टिकोण बदल गया है।
इसके अलावा, महामारी के प्रति भारत की जांची-परखी राजकोषीय और मौद्रिक प्रतिक्रिया ने लोगों की जरूरतों को पूरा करते हुए व्यापक आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित की। साथ ही, गरीबों के लिए निर्धारित एक-एक रुपया हमारे प्रभावशाली डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के कारण, बिना किसी ‘लीकेज’ या देरी के तुरंत उन तक पहुंच गया। ऐसे कई कारकों ने एक मजबूत विश्वसनीय आधार प्रदान किया जिस पर हम अपने जी-20 की अध्यक्षता के एजेंडे को आगे बढ़ा सकते हैं। यही कारण है कि हम विभिन्न मुद्दों पर चर्चा, विचार-विमर्श और वितरण के लिए दुनिया के देशों को एक साथ लाने में सक्षम हुए हैं।
मुद्रास्फीति एक प्रमुख मुद्दा है जिसका सामना दुनिया कर रही है। हमारी जी-20 अध्यक्षता में जी-20 के वित्त मंत्रियों और केन्द्रीय बैंकों के गवर्नरों ने भाग लिया। यह स्वीकार किया गया कि केंद्रीय बैंकों द्वारा नीतिगत रुख का समयबद्ध और स्पष्ट संदेश महत्वपूर्ण है। यह सुनिश्चित कर सकता है कि मुद्रास्फीति का मुकाबला करने के लिए प्रत्येक देश द्वारा अपनाई गई नीतियों से अन्य देशों में नकारात्मक नतीजे न हों।
खाद्य और ऊर्जा मूल्य अस्थिरता से जुड़ी चुनौतियों से निपटने के लिए देशों को नीतिगत अनुभवों को साझा करने में सक्षम बनाने पर भी महत्वपूर्ण जोर दिया गया, खासकर जब खाद्य और ऊर्जा बाजार निकटता से जुड़े हुए हैं। जहां तक अंतरराष्ट्रीय कराधान का संबंध है, भारत ने जी-20 मंच का उपयोग ‘पिलर वन’ पर महत्वपूर्ण प्रगति प्राप्त करने के लिए एक मजबूत प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए किया, जिसमें बहुपक्षीय समझौते (कन्वेंशन) के पाठ का वितरण भी शामिल है।
यह कन्वेंशन देशों और न्यायालयों को अंतरराष्ट्रीय कर प्रणाली के ऐतिहासिक, प्रमुख सुधार के साथ आगे बढ़ने की अनुमति देगा। जैसा कि आप देख सकते हैं, कई मुद्दों पर पर्याप्त प्रगति हुई है। यह उस विश्वास का भी परिणाम है जो अन्य साझेदार देशों ने भारत की अध्यक्षता में दिखाया है।
प्रश्न: क्या हम ऋण पुनर्गठन की चुनौती पर जी -20 शिखर सम्मेलन में किसी आम सहमति की उम्मीद कर सकते हैं, जो ‘ग्लोबल साउथ’ के लिए एक समस्या बन गई है। क्या भारत चीन के कर्ज के जाल में फंसे देशों जैसे श्रीलंका, सूडान आदि की मदद कर रहा है? भारत ने इन देशों को सहायता के आवंटन में कितनी वृद्धि की है?
उत्तर: मुझे खुशी है कि आपने मुझसे इस विषय पर एक सवाल पूछा। ऋण संकट वास्तव में दुनिया के लिए, विशेष रूप से विकासशील देशों के लिए बड़ी चिंता का विषय है। विभिन्न देशों के नागरिक इस संबंध में सरकारों द्वारा लिए जा रहे निर्णयों पर उत्सुकता से नजर रख रहे हैं। कुछ सराहनीय परिणाम भी हैं। सबसे पहले, जो देश ऋण संकट से गुजर रहे हैं या इससे गुजर चुके हैं, उन्होंने वित्तीय अनुशासन को अधिक महत्व देना शुरू कर दिया है। दूसरा, जिन अन्य देशों ने कुछ देशों को ऋण संकट के कारण कठिन समय का सामना करते देखा है, वे उन्हीं गलत कदमों से बचने के प्रति सचेत हैं।
आप अच्छी तरह से जानते हैं कि मैंने अपनी राज्य सरकारों से वित्तीय अनुशासन के बारे में भी सचेत रहने का आग्रह किया है। चाहे वह मुख्य सचिवों के राष्ट्रीय सम्मेलन में हो या ऐसे किसी भी मंच पर, मैंने कहा है कि वित्तीय रूप से गैर-जिम्मेदार नीतियां और लोकलुभावनवाद अल्पावधि में राजनीतिक परिणाम दे सकते हैं, लेकिन लंबी अवधि में एक बड़ी सामाजिक और आर्थिक चुनौती लेकर आएंगे। इसके दुष्परिणामों का सबसे अधिक असर सबसे गरीब व सबसे कमजोर लोगों पर पड़ता है।
हमारी जी-20 अध्यक्षता ने ऋण संबंधी जटिलताओं से उत्पन्न वैश्विक चुनौतियों से निपटने पर जोर दिया है, विशेष रूप से ‘ग्लोबल साउथ’ के देशों के लिए। जी-20 देशों के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गवर्नरों ने साझा रूपरेखा वाले देशों और साझा ढांचे से परे भी ऋण व्यवहार में अच्छी प्रगति को स्वीकार किया है। हम अपने मूल्यवान पड़ोसी श्रीलंका की जरूरतों के प्रति भी बहुत संवेदनशील रहे हैं।
वैश्विक ऋण पुनर्गठन प्रयासों में तेजी लाने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ), विश्व बैंक और जी-20 अध्यक्षता की एक संयुक्त पहल के रूप में ‘वैश्विक संप्रभु ऋण गोलमेज’ (ग्लोबल सोवरेन डेब्ट राउंडटेबल) की इस साल के आरंभ में शुरुआत की गई थी। यह प्रमुख हितधारकों के बीच संवाद को मजबूत करेगा और प्रभावी ऋण उपचार की सुविधा प्रदान करेगा। जैसा कि मैंने पहले कहा था इन मुद्दों को हल करने के लिए बहुत कुछ किया जा रहा है। मैं, सकारात्मक हूं कि विभिन्न देशों के लोगों के बीच बढ़ती जागरुकता यह सुनिश्चित करेगी कि ऐसी स्थितियों की अक्सर पुनरावृत्ति न हों।
प्रश्न : समरकंद में राष्ट्रपति पुतिन को दिए गए आपके संदेश कि यह युद्ध का युग नहीं है, ने दुनिया भर में समर्थन हासिल किया है। जी-7 और चीन-रूस गठबंधन के बीच मतभेदों को देखते हुए, समूह के लिए इस संदेश को अपनाना मुश्किल होगा। उस संदर्भ में आम सहमति बनाने में मदद करने के लिए भारत अध्यक्ष के रूप में क्या कर सकता है और उस आम सहमति को बनाने में नेताओं के लिए आपका व्यक्तिगत संदेश क्या होगा?
उत्तर : विभिन्न क्षेत्रों में कई अलग-अलग संघर्ष हैं। इन सभी को बातचीत और कूटनीति के माध्यम से हल करने की आवश्यकता है। कहीं भी किसी भी संघर्ष पर हमारा यही रुख है। चाहे जी-20 अध्यक्ष के रूप में हो या न हो, हम दुनिया भर में शांति सुनिश्चित करने के हर प्रयास का समर्थन करेंगे।
हम मानते हैं कि विभिन्न वैश्विक मुद्दों पर हम सभी की अपनी-अपनी स्थिति और अपने-अपने दृष्टिकोण हैं। साथ ही, हमने बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि विभाजित दुनिया के लिए साझा चुनौतियों से लड़ना मुश्किल होगा। प्रगति, विकास, जलवायु परिवर्तन, महामारी और आपदा से जुड़ी चुनौतियां दुनिया के हर हिस्से को प्रभावित करती हैं और ऐसे कई मुद्दों पर परिणाम देने के लिए दुनिया जी-20 की ओर देख रही है। अगर हम एकजुट हों तो हम सभी इन चुनौतियों का बेहतर तरीके से सामना कर सकते हैं। हम शांति, स्थिरता और प्रगति के समर्थन में हमेशा खड़े रहे हैं और रहेंगे।
प्रश्न: भारत द्वारा विश्वसनीय प्रौद्योगिकियों के समान वितरण और प्रौद्योगिकियों के लोकतंत्रीकरण पर बड़ा जोर दिया गया है। हमने इस लक्ष्य को कहां तक हासिल किया है?
उत्तर: जब प्रौद्योगिकी के लोकतंत्रीकरण की बात आती है तो भारत की वैश्विक विश्वसनीयता है। हमने पिछले कुछ वर्षों में कई पहल की हैं जिन पर दुनिया ने ध्यान दिया है। और ये पहल एक बड़े वैश्विक आंदोलन का जरिया भी बन रहे हैं। दुनिया का सबसे बड़ा (कोविड) टीकाकरण अभियान भी सबसे समावेशी था। हमने 200 करोड़ से अधिक खुराक मुफ्त प्रदान की। यह एक तकनीकी मंच कोविन पर आधारित था। इसके अलावा, इस मंच का लाभ भी दुनिया को दिया गया ताकि अन्य देश भी इसे अपना सकें और लाभान्वित हो सकें। आज डिजिटल लेन-देन हमारे व्यावसायिक जीवन के हर वर्ग को सशक्त बना रहा है, रेहड़ी-पटरी वालों से लेकर बड़े बैंकों तक।
हमारा ‘डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर’ विश्व स्तर पर कई लोगों के लिए आश्चर्य का विषय था, खासकर जिस तरह से इसका उपयोग महामारी के दौरान सार्वजनिक सेवा वितरण के लिए किया गया था। दुनिया भर के कई देशों ने कल्याणकारी पैकेजों की घोषणा की थी, लेकिन उनमें से कुछ को इसे लोगों तक पहुंचाना मुश्किल हो गया था। लेकिन भारत में, जन धन-आधार-मोबाइल (जेएएम) की तिकड़ी ने एक क्लिक के साथ लाभार्थियों को सीधे वित्तीय समावेशन, प्रमाणीकरण और लाभ का हस्तांतरण सुनिश्चित किया। इसके अलावा, ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ओएनडीसी) एक ऐसी पहल है जिसका नागरिकों और विशेषज्ञों द्वारा डिजिटल मंचों पर एक समान अवसर उपलब्ध कराने और उसका लोकतांत्रिकरण करने में एक महत्वपूर्ण बिंदु के रूप में स्वागत किया जा रहा है।
डिजिटल अर्थव्यवस्था मंत्रियों की बैठक में जी-20, डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे को विकसित करने, तैनात करने और नियंत्रित करने के लिए एक रूपरेखा अपनाने में सक्षम हुआ। उन्होंने डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (डीपीआई) पारिस्थितिकी तंत्र के लिए वैश्विक प्रयासों को समन्वित करने के लिए ‘वन फ्यूचर अलायंस’ की नींव रखते हुए डिजिटल अर्थव्यवस्था को सुरक्षित रखने के लिए सिद्धांतों को सफलतापूर्वक अपनाया है।
यह सर्वविदित है कि प्रौद्योगिकी स्वास्थ्य सेवा वितरण पर बहुत प्रभाव डाल सकती है। आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन भारत में इस क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। ‘वन अर्थ वन हेल्थ’ के हमारे मंत्र के कारण लोगों के स्वास्थ्य के लिए हमारी चिंता हमारी सीमाओं से समाप्त नहीं होती है। हमारी जी-20 अध्यक्षता के दौरान, समूह के स्वास्थ्य मंत्रियों ने वैश्विक डिजिटल स्वास्थ्य पहल पर सफलतापूर्वक आम सहमति बनाई है जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) वैश्विक डिजिटल स्वास्थ्य रणनीति को लागू करने में मदद करेगी।
प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने की दिशा में हमारा दृष्टिकोण समावेशी, अंतिम व्यक्ति तक वितरण और किसी को पीछे नहीं छोड़ने की भावना से प्रेरित है। ऐसे समय में जब प्रौद्योगिकी को असमानता और गैर-समावेशी वाहक के रूप में माना जाता था, हम इसे समानता और समावेश का वाहक बना रहे हैं।
प्रश्न: जब आपने 2070 का लक्ष्य निर्धारित किया तो आपने देखा कि जीवाश्म ईंधन भारत जैसे देशों में एक प्रमुख भूमिका निभा रहा है, जिस पर पश्चिम द्वारा नाराजगी जताई गई थी। लेकिन दुनिया के अधिकांश देशों ने यूक्रेन संघर्ष के बाद जीवाश्म ईंधन के महत्व को महसूस किया, यूरोप में कुछ ने कोयला और गैस की ओर वापस रुख किया। आप यूक्रेन युद्ध के बाद के युग में जलवायु परिवर्तन लक्ष्यों को कैसे प्रगति करते हुए देखते हैं?
उत्तर: हमारा सिद्धांत सरल है – विविधता हमारी सबसे बड़ी पूंजी है। वह चाहे समाज में हो या हमारे ऊर्जा मिश्रण के संदर्भ में। ऐसा नहीं होता है कि कोई एक चीज हर जगह लागू हो। देशों के विभिन्न मार्गों को देखते हुए, ऊर्जा पारगमन के लिए हमारे रास्ते अलग-अलग होंगे।
दुनिया की आबादी का 17 प्रतिशत होने के बावजूद, संचयी उत्सर्जन में भारत की ऐतिहासिक हिस्सेदारी 5 प्रतिशत से कम रही है। फिर भी, हमने अपने जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। मैं पहले ही एक प्रश्न के उत्तर में इस क्षेत्र में हमारी विभिन्न उपलब्धियों के बारे में बात कर चुका हूं। इसलिए, हम निश्चित रूप से सही रास्ते पर हैं और विकास सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक विभिन्न कारकों को भी ध्यान में रख रहे हैं।
जहां तक जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई के भविष्य के बारे में बात है तो मैं इसके बारे में बेहद सकारात्मक हूं। हम अन्य देशों के साथ काम कर रहे हैं, ताकि दृष्टिकोण को प्रतिबंधात्मक से रचनात्मक दृष्टिकोण में बदला जा सके। विशुद्ध रूप से यह या वह न करने के दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, हम एक ऐसा दृष्टिकोण लाना चाहते हैं जो लोगों और राष्ट्रों को जागरूक करे कि वे वित्त प्रौद्योगिकी और अन्य संसाधनों के संदर्भ में क्या कर सकते हैं और कैसे मदद कर सकते हैं।
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