रिकांगपिओ : जिला किन्नौर के विभिन्न क्षेत्रों में वीरवार को साजो पर्व (किन्नौरी नववर्ष) मनाया गया। यह पर्व माघ माह के पहले दिन मनाया जाता है। मान्यता है कि साजो पर्व के बाद किन्नौर जिला में नववर्ष शुरू होता है। इस दिन घरों में विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं और पूजा पाठ किया जाता है। जिला में यह पर्व कल्पा, किल्बा, चगांव, सांगला, निचार, यांगपा व अन्य स्थानों में मनाया गया।
माघ में किन्नौर के देवी-देवता स्वर्ग की ओर प्रस्थान करते हैं
मान्यता है कि माघ के पहले दिन किन्नौर के देवी-देवता स्वर्ग की ओर प्रस्थान करते हैं और करीब पंद्रह दिन बाद पृथ्वी लोक का आगमन होता है और साथ ही देवी-देवता वर्षभर का राशिफल भी बताते हैं। वहीं कल्पा गांव के मंदिर प्रांगण में विष्णु नारायण, देवी नागिन को अपने मंदिर परिसर के साथ लगते सेरिंग (रेत) में ढोल-नगाड़ों के साथ बजाते हुए लाया गया जहां पर गांव के सभी ग्रामीणों ने एकत्रित होकर माइनस तापमान में भी किन्नौरी पारंपरिक वेशभूषा में नाटी डाली। मंदिर मोतमिन गौतम सिंह व जानकारों के अनुसार साजो पर्व, को किन्नौरी नववर्ष के नाम से भी जाना जाता है। इस पर्व को पूर्वज व बुजुर्ग पहले से इन रीति-रिवाजों को मनाते आ रहे हैं।
मकर संक्रांति पर देवी-देवता स्वर्ग की यात्रा पर निकले
यह है मान्यता मान्यता है कि सतयुग में देवी चंडिका का कल्पा में राजपाट चलता था व इस सेरिंग जगह पर राक्षस भी रहते थे। इस क्षेत्र में अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिए देवी चंडिका और राक्षसों के मध्य लड़ाई होती रहती थी, लेकिन कोई भी पराजित नहीं होता था। अंत में देवी की मदद के लिए तेक (शिव का स्वरूप) सेरिंग में प्रकट हुए जो आज भी धरांक (पत्थर की शिला) के रूप में सेरिंग खेत में मौजूद हैं और दोनों ने मिलकर राक्षसों का संहार किया। आज भी इसी परंपरा को निभाते हुए देवी तेक से मिलने सेरिंग में आते हैं।
चाहे यहां पर कैसी भी परिस्थिति हो। वही सेरिंग खेत में नाच-गान के बाद देवी-देवता को मंदिर परिसर में लाया जाता है और शाम के समय महिलाएं लोक पारंपरिक गीत गाती हैं। उसके बाद देवता स्वर्ग की ओर प्रस्थान करते हैं। सभी देवी-देवता एक पखवाड़े के बाद धरती लोक पर आते हैं व अपने साथ सुख-शांति व वर्षभर में होने वाला राशि फल भी बताते हैं।
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