मंडी : वर्तमान की भाग दौड़ भरे जीवन में व्यक्ति सुकून की जिंदगी नहीं जी पाता, ऐसे में काम और ज्यादा प्राप्त हासिल करने की चिंता के बीच में खुद को समय न दे पाना, हैल्दी डाइट न कर पाना आदि ऐसे कई जोखिम कारण हैं जो मस्तिष्क पर असर डालते हैं और मस्तिष्क से संबंधित बीमारियों के जनक बनते हैं। उन्हीं बीमारियों में से एक प्रमुख बीमारी है स्ट्रोक यानि मस्तिष्क का दौरा। स्ट्रोक में से भी सबसे काॅमन स्ट्रोक है इस्केमिक हार्ट स्ट्रोक। अब इस्केमिक हार्ट स्ट्रोक का पता आसानी से लगाकर उसका उपचार शीघ्र संभव होगा। स्ट्रोक (मस्तिष्काघात) का शीघ्र पता लगाने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मंडी ने पोर्टेबल और सस्ता नियर इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी डायोड (एनआईआरएस एलईडी) डिवाइस तैयार किया है। स्ट्रोक की कारण दिमाग में सही से खून नहीं पहुंचना है। जिसका पता लगाने के इस डिवाइस को आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (पीजीआईएमईआर) चंडीगढ़ का सहयोग लिया गया है। एनआईआरएस. एलईडी डिवाइस से हदय रोग पता लगानके साथ-साथ शीघ्र उपचार करने में मदद मिलेगी। इस डिवाइस से ग्रामीणों और दूरदराज क्षेत्रों में रोगियों को इसका ज्यादा लाभ होगा। साधनों की कमी और दूरदराज के पिछड़े क्षेत्रों में समय से निदान मिलेगा।
कैसे आता है इस्केमिक स्ट्रोक
जब मस्तिष्क के किसी भाग में खून का प्रवाह ठीक से नहीं हो पाता और खून का प्रवाह बाधित होता है तभी मस्तिष्क के दौरा पड़ता है। स्ट्रोक से जान जाना प्रमुख कारणों में से एक है। कई तरह के स्ट्रोक होते हैं, जिनमें सबसे आम इस्केमिक स्ट्रोक है। इस्केमिक स्ट्रोक तब होता है जब ऑक्सीजन युक्त खून को मस्तिष्क तक ले जाने वाली धमनियों में ब्लाकेज हो जाता है। धमनियों में खून का थक्का बन जाता है। जिससे मस्तिष्क तक खून का प्रवाह नहीं होता और इस्केमिक स्ट्रोक होता है। यह थक्का इसलिए बनता है क्योंकि रक्त वाहिकाओं में फैट जम जाता है।
इन्होंने तैयार की डिवाइस
आईआईटी मंडी के स्कूल आफ कम्प्यूटिंग एंड इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग एसोसिएट प्रोफैसर डाॅ. शुभजीत राय चौधरी और उनके विद्यार्थी दालचंद अहिरवार के साथ पोस्ट ग्रैजुएट इंस्टीट्यूट फार मैडीकल एजुकेशन एंड रिसर्च चंडीगढ़ के डाॅ. धीरज खुराना ने यह डिवाइस तैयार की है।
व्यवस्था और इलाज इस पर निर्भर करता उपचार
इस्केमिक स्ट्रोक के उपचार की कारगर व्यवस्था और इलाज इस पर निर्भर करता है कि समस्या का शीघ्र पता लगाकर इसका उपचार शुरू किया जाए। वर्तमान में मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एमआरआई) और कंप्यूटर टोमोग्राफी (सीटी) को इस्केमिक स्ट्रोक का पता लगाने का सबसे स्टीक परीक्षण (गोल्ड स्टैंडर्ड) माना जाता है। ये निदान भरोसंद तो हैं लेकिन इनका इंफ्रास्ट्रक्चर और लागत काफी ज्यादा होने के कारण भारत की बड़ी आबादी की पहुंच से परे है। बता दें कि देश में प्रत्येक 10 लाख लोगों पर केवल एक एमआरआई सैंटर है।
मस्तिष्क के फ्रंटल लोब में जैव-मार्करों का किया अध्ययन
आईआईटी मंडी की टीम ने इस्केमिक स्थितियों में फोरआर्म और मस्तिष्क के फ्रंटल लोब में जैव-मार्करों का अध्ययन किया। शोधकर्ताओं ने अपने डिटेक्टर प्रोटोटाइप के वैलिडेशन के लिए फोरआर्म का एक्सपैरिमैंटल ऑक्ल्जून किया और फिर फ्रंटल लोब पर इस्केमिक स्ट्रोक उत्पन्न किया और यह पाया कि डिवाइस में निदान की बेजोड़ क्षमता है।
चिंताजनक हैं इस्केमिक स्ट्रोक के आंकड़े
इस्केमिक स्ट्रोक का भारतीय आंकड़ा चिंताजनक है। हर साल प्रत्येक 500 भारतवासियों को एक स्ट्रोक लगता है। इसका कारण मस्तिष्क में पूरा खून नहीं पहुंचना या रुक-रुक कर पहुंचना है। सर्वे बताते हैं कि स्ट्रोक के कुल मामलों में करीब 10 प्रतिशत से 15 प्रतिशत 40 वर्ष से कम आयु के लोगों में देखा गया है।
शीघ्र जांच और उचित निदान व्यवस्था पर ध्यान केंद्रित कर रही सरकार
केंद्रीय सरकार कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग और स्ट्रोक की रोकथाम और नियंत्रण के लिए अपने राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपीसीडीसीएस) के तहत स्ट्रोक समेत सभी गैर-संक्रामक रोगों के लिए विभिन्न स्तर पर शीघ्र जांच और उचित निदान व्यवस्था पर ध्यान केंद्रित कर रही है। आईआईटी मंडी टीम द्वारा हाल में विकसित डिवाइस से समस्त भारत में स्ट्रोक का इलाज सुलभ कराने में मदद मिलेगी।
क्या कहते हैं एसोसिएट प्रोफैसर और शोध विद्वान
एसोसिएट प्रोफैसर आईआईटी मंडी डॉ. शुभजीत राय चौधरी ने बताया कि टीम ने एक छोटा वियरेबल डिवाइस डिजाइन और उसका विकसित किया है। ये एनआईआरएस एलईडी डिवाइस के उपयोग से इस्केमिक स्ट्रोक का पता लगाने के लिए 650 एनएम से 950 एनएम रैंज में प्रकाश उत्सर्जन करता है। यह प्रकाश खून के रंगीन घटकों जैसे हीमोग्लोबिन से प्रतिक्रिया करता है और खून के विशेष लक्षणों को सामने रखता है जैसे संबंधित हिस्से में ऑक्सीजन सैचुरेशन, ऑक्सीजन उपयोग और खून की मात्रा का सूचक की सूचना देगा। आईआईटी मंडी के शोध विद्वान दालचंद अहिरवार ने कहा कि संयुक्त मैट्रिक्स से खून में हीमोग्लोबिन की अस्थायी गतिविधि दिखती है, जिसकी मदद से उस हिस्से के टिश्यू में खून के नहीं पहुंचने या रुक-रुक कर पहुंचने का आसानी से पता लगाया जा सकता है। इस्केमिक स्थितियों का अध्ययन करने के लिए आक्सीजन सैचुरेशन, संबंधित हिस्से में आक्सीजन की खपत और खून की मात्रा सूचकांक जैसे बायोमार्करों का उपयोग किया है जो अन्य तकनीकों की तुलना में इस्केमिक स्थितियों का अधिक स्टीक अनुमान दे सकते हैं।
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