जी-20 में अफ़्रीकी यूनियन बना गेम चेंजर #
September 9th, 2023 | Post by :- | 2 Views
भारत में आयोजित जी-20 दुनिया के लिए गेम चेंजर साबित हो सकता है। दरअसल 55 देशों के संगठन अफ़्रीकी यूनियन के इसमें शामिल होने से वैश्विक स्तर पर बड़े बदलाव आ सकते हैं। जी-20 के सदस्य देशों के पास अब तक दुनिया की 85 फ़ीसदी जीडीपी, 75 फ़ीसदी ग्लोबल ट्रेड और दुनिया की दो तिहाई आबादी थी। अब अफ़्रीकी यूनियन को पूर्ण सदस्यता मिलने के साथ ही यह आंकड़े बदल जाएंगे अर्थात् जी-20 अब ऐसा वैश्विक मंच बन गया है, जो दुनिया के व्यापार की दशा और दिशा तय करेगा।

अर्थव्यवस्था ही राजनीति के उद्देश्य तय करती है। अत: वैश्विक राजनीति भी इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकती। अफ़्रीकी यूनियन की सदस्यता दिलाने को लेकर चीन, रूस और भारत में कड़ी प्रतिस्पर्धा थी और अंतत: बाज़ी भारत के हाथ लगी। ऐसे में यह समझना बेहद जरूरी है कि अफ़्रीकी यूनियन को जी-20 में शामिल करने के लिए भारत ने अभूतपूर्व प्रयास क्यों किए और भारत के इसमें क्या हित दिखाई पड़ते हैं। दरअसल अफ़्रीकी महाद्वीप गरीबी,पिछड़ेपन,राजनीतिक अस्थायित्व और गृहयुद्ध से अभिशिप्त रहा है। इसके अधिकांश देश यूरोप के उपनिवेश रहे हैं।
यूरोपियन देशों से अफ्रीका आज़ाद तो हुआ लेकिन विकास की दौड़ में वह पिछड़ता चला गया। हालात इतने खराब हैं कि अफ़्रीकी देश भारत,चीन और रूस पर यूरोपियन देशों से ज्यादा भरोसा करने लगे। चीन ने इस भरोसे का फायदा उठाकर एशिया प्रशांत क्षेत्र, अफ्रीका और पूर्वी यूरोप में संभावित आर्थिक विकास को गति देने के नाम पर अफ़्रीकी देशों को ढांचागत निर्माण के लिए बेतहाशा कर्ज दिया और उन्हें जाल में फंसा लिया।
चीन का दावा है कि उसने अफ्रीका में बड़ी संख्या में महत्वपूर्ण परियोजनाओं को लगातार बढ़ाया है, जिसने अफ्रीकी देशों के आर्थिक व सामाजिक विकास को प्रभावी ढंग से बढ़ाया है। वहीं कई एजेंसियों का दावा है कि बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत बीजिंग की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं से अफ्रीका को लाभ तो हुआ है लेकिन उनके प्रतिकूल प्रभाव देश के पर्यावरण के साथ-साथ अर्थव्यवस्था पर भी देखे जा सकते हैं।

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