भारत या इंडिया, क्या कहता है इतिहास? #
September 6th, 2023 | Post by :- | 12 Views
Bharat ka naam bharat kaise pada : भारत या इंडिया हमें क्या कहना चाहिए और क्यों? भारत और इंडिया शब्द की उत्पत्ति कब और कैसे हुए क्या है इनका अर्थ? प्राचीन और पौराणिक इतिहास क्या कहता है? सब कुछ जानेंगे एकदम प्रामाणिक तरीके से। यह भी कि हिन्दुस्तान शब्द कब से प्रचलन में आया और क्या है इस शब्द का अर्थ।
भारतवर्ष शब्द का अर्थ : भारत में भा का अर्थ ज्ञान रूपी प्रकाश और रत का अर्थ जुटा हुआ, खोजी या लीन। इस तरह भारत का अर्थ होता है जो लोग इस भूमि पर ज्ञान की खोज में लगे रहते हैं। दूसरा अर्थ है जो भरत के वंशज हैं। इसमें वर्ष का अर्थ है एक वर्षा ऋतु से दूसरी वर्षा ऋतु के बीच का समय या साल। भिन्न भिन्न प्रकृति या वर्षा क्षेत्र को वर्ष कहा जाता है। चूंकि भारत में सभी तरह की प्रकृति, 4 ऋतुएं और वर्षा क्षेत्र हैं तो एकमात्र यही देश है जिसके नाम के आगे वर्ष लगाया जाता है। अन्य कई देशों में 2 ऋतुएं ही होती हैं तो वर्ष का कोई अर्थ नहीं।
उल्लेखनीय है कि भरत शब्द (भारत नहीं) का अर्थ भारण पोषण करने वाला। प्राजा को पालने वाला होता है।
भारत का नाम कैसे पड़ा भारत?
विष्णु पुराण अनुसार धरती के सात द्वीप है- जम्बू, प्लक्ष, शाल्मली, कुश, क्रौंच, शाक एवं पुष्कर। इसमें से जम्बू द्वीप सभी के बीचोबीच स्थित है। जम्बू द्वीप के 9 खंड हैं- इलावृत, भद्राश्व, किंपुरुष, भारत, हरि, केतुमाल, रम्यक, कुरु और हिरण्यमय। समुद्र के उत्तर तथा हिमालय के दक्षिण में भारतवर्ष स्थित है। इसका विस्तार 9 हजार योजन है। यह स्वर्ग अपवर्ग प्राप्त कराने वाली कर्मभूमि है।
भागवत पुराण के स्कंद 5 और अध्याय 4 के श्लोक में इसका उल्लेख मिलता है कि धरती के राजा महान प्रियव्रत थे। उनके दत्तक पुत्र अग्नीन्ध्र हुए, जो  संपूर्ण जम्बूद्वीप के सम्राट बने। अग्नीध्र ने अपने पुत्र नाभि को उस क्षेत्र का राजा बनाया, जिसे बाद में भारतवर्ष कहा जाने लगा। नाभि के पुत्र ऋषभदेव ने इस क्षेत्र पर जब तक शासन किया तब तक इस क्षेत्र का नाम अजनाभखंड या अजनाभवर्ष था। ऋषभदेव के पुत्र भरत जब इस संपूर्ण क्षेत्र के सम्राट बने तो उनके नाम पर इस क्षेत्र का नाम भारत पड़ा।
‘अजनाभं नामैतदवर्षभारतमिति यत आरभ्य व्यपदिशन्ति।’- श्रीमदभागवत (५/७/३) 
ऋषभदेव स्वयंभू मनु से पांचवीं पीढ़ी में इस क्रम में हुए- स्वयंभू मनु, प्रियव्रत, अग्नीघ्र, नाभि और फिर ऋषभ। राजा और ऋषि ऋषभनाथ के दो पुत्र थे- भरत और बाहुबली। बाहुबली को वैराग्य प्राप्त हुआ तो ऋषभ ने भरत को चक्रवर्ती सम्राट बनाया। भरत को वैराग्य हुआ तो वो अपने बड़े पुत्र को राजपाट सौंपकर जंगल चले गए।
इस बात के पर्याप्त प्रमाण हमें शिलालेख एवं अन्य धर्मंग्रन्थों में भी मिलते हैं। इसका उल्लेख अग्निपुराण, मार्कण्डेय पुराण व भक्तमाल आदि ग्रन्थों में भी मिलता है। अत: दुष्यन्त-शकुन्तला के पुत्र भरत के नाम पर इस देश का नाम ‘भारत’ होना केवल एक जनश्रुति है सत्य नहीं।

येषां खलु महायोगी भरतो ज्येष्ठ: श्रेष्‍ठगुण आसीद् यनेदं वर्षं भारतमिति व्यपदिशन्ति।- भागवत पुराण (स्कन्द 5, अध्याय 4)
हिमाद्रेर्दक्षिण वर्षं भरतस्य न्यवेदयत्।
तस्मात्तु भारतं वर्ष तस्य नाम्ना विदुर्बुधा:।- लिंग पुराण (47-21-24).
अर्थात : अर्थात इंद्रिय रूपी सांपों पर विजय पाकर ऋषभ ने हिमालय के दक्षिण में जो राज्य भरत को दिया तो इस देश का नाम तब से भारतवर्ष पड़ गया।….इसी बात को प्रकारान्तर से वायु और ब्रह्मांड पुराण में भी कहा गया है। भरत का क्षेत्र होने के कारण यह भारत कहा गया।
उल्लेखनीय है कि भगावान श्री हरि विष्णु के 24 अवतारों में ऋषभनाथ को 8वां अवतार माना जाता है और शैवपंथ में उन्हें आदिनाथ कहा जाता है। जैन धर्म के ये प्रथम तीर्थंकर हैं।
एक तर्क यह भी दिया जाता था कि वैदिक काल में भरत नाम से एक प्रसिद्ध जाति हुआ करती थी जो सरस्वती और सिंधु नदी के आसपास रहा करती थी। इसी के आधार पर इस संपूर्ण क्षेत्र को भारतों का क्षेत्र यानी भारतवर्ष कहा जाने लगा। इस जाति का इतिहास में प्रसिद्ध दस राजाओं से युद्ध हुआ था। जिसे दासराज्ञ का युद्ध कहा जाता है।
इंडिया नाम का अर्थ क्या होता है:
इंडिया शब्द की उत्पत्ति इंडस वैली के कारण हुई है। भारत के रोम और यूनानी लोगों से प्राचीनकाल में संबंध रह हैं। यूयानी यानी ग्रीक लोग भारत में शिक्षा प्राप्त करने और व्यापार करने के आते थे। उनका मुख्य पड़ा सिंधु नदी और घाटी के क्षेत्र में भी होता था। उस काल में सिंधु एक बहुत बड़ी नदी थी। इस नदी की सात साहायक नदियां थीं। इसी सिंधु नदी को ग्रीम लोगों ने इंडस कहा है। यह इंडस शब्द पहले इंडिका हुआ और बाद में अंग्रेजों के प्रभाव से इंडिया हो गया।
ऐसा कहा जाता है कि ईरानी यानी पारसी लोग इस संपूर्ण क्षेत्र को हिंदूस कहते थे। इसी को ग्रीक लोगों ने इंडस कर दिया। चंद्रगुप्त मौर्य के काल में यूनान का एक यात्री मेगस्थनीज आया था। वह ग्रीक और संस्कृत भाषा का विद्वान था। उसने भारतवर्ष का वर्णन अपनी किताब ‘‍इंडिका’ में किया है। इसमें खासकर मौर्यकालीन भारत के इतिहास का विवरण मिलता है।
हिन्दुस्तान शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?
सिंधु से बना हिंदू : ऐसा कहते हैं कि सिन्धु’ से बना ‘हिन्दू’ शब्द। भाषाविदों के अनुसार हिन्द-आर्य भाषाओं की ‘स्’ ध्वनि (संस्कृत का व्यंजन ‘स्’) ईरानी भाषाओं की ‘ह्’ ध्वनि में बदल जाती है इसलिए सप्त सिन्धु अवेस्तन भाषा (पारसियों की धर्मभाषा) में जाकर हफ्त हिन्दू में परिवर्तित हो गया (अवेस्ता : वेंदीदाद, फर्गर्द 1.18)। इसके बाद ईरानियों ने सिन्धु नदी के पूर्व में रहने वालों को ‘हिन्दू’ नाम दिया। इसी से कहा किया हिंदू स्थान जो आगे चलकर हिंदुस्तान बन गया।
हालांकि कुछ भाषा शास्त्री कहते हैं कि यदि पारसियों को ‘स्’ के उच्चारण में दिक्कत होती तो वे सिन्धु नदी को भी हिन्दू नदी ही कहते और पाकिस्तान के सिंध प्रांत को भी हिन्द कहते और सि‍न्धियों को भी हिन्दू कहते। आज भी सिन्धु है और सिन्धी भी। दूसरी बात यह कि उनके अनुसार फिर तो संस्कृत का नाम भी हंस्कृत होना चाहिए।
इन्दु से बना हिन्दू : चीनी यात्री ह्वेनसांग के समय में ‘हिन्दू’ शब्द प्रचलित था। यह माना जा सकता है कि ‘हिन्दू’ शब्द ‘इन्दु’ जो चन्द्रमा का पर्यायवाची है, से बना है। चीन में भी ‘इन्दु’ को ‘इंतु’ कहा जाता है। भारतीय ज्योतिष चन्द्रमा को बहुत महत्व देता है। राशि का निर्धारण चन्द्रमा के आधार पर ही होता है। चन्द्रमास के आधार पर तिथियों और पर्वों की गणना होती है। अत: चीन के लोग भारतीयों को ‘इंतु’ या ‘हिन्दू’ कहने लगे। मुस्लिम आक्रमण के पूर्व ही ‘हिन्दू’ शब्द के प्रचलित होने से यह स्पष्ट है कि यह नाम पारसियों या मुसलमानों की देन नहीं है।
बृहस्पति आगम में एक श्लोक‍ मिलता है-
श्लोक : ‘हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्। तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते॥’- (बृहस्पति आगम)
अर्थात : हिमालय से प्रारंभ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है।
‘हिन्दू’ शब्द उस समय धर्म की बजाय राष्ट्रीयता के रूप में प्रयुक्त होता था। चूंकि उस समय भारत में केवल वैदिक धर्म को ही मानने वाले लोग थे और तब तक अन्य किसी धर्म का उदय नहीं हुआ था इसलिए ‘हिन्दू’ शब्द सभी भारतीयों के लिए प्रयुक्त होता था। भारत में हिन्दुओं के बसने के कारण कालांतर में विदेशियों ने इस शब्द को धर्म के संदर्भ में प्रयोग करना शुरू कर दिया। हालांकि भी यह भी कहा जाता है कि ‘हिन्दू’ नाम तुर्क, फारसी, अरबों आदि के प्रभाव काल के दौर से भी पहले से चला आ रहा है जिसका एक उदाहरण हिन्दूकुश पर्वतमाला का इतिहास है।

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